Ad

Apple Farming

जम्मू-कश्मीर सरकार राज्य में सेब की खेती पर अनुदान प्रदान कर रही है

जम्मू-कश्मीर सरकार राज्य में सेब की खेती पर अनुदान प्रदान कर रही है

जम्मू कश्मीर पूरी दुनिया में अपने सेब के लिए मशहूर है। जम्मू कश्मीर के लाखों लोग सेब की खेती के जरिए ही अपना जीवन यापन करते हैं। सेब की खेती करने वाले किसान भाइयों के लिए यह बड़े काम की खबर साबित होने वाली है। हमारे भारत में ही नहीं विदेशों में भी सेब को काफी अधिक पसंद किया जाता है। भारत में सेब की खेती कश्मीर राज्य में होती है। कश्मीर के मूल निवासी किसानों की आमदनी का सबसे बड़ा जरिया सेब की खेती है। कश्मीर का सेब दुनिया भर में मशहूर है। जम्मू कश्मीर में लगभग 25 लाख लोगों को सेब की खेती से रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। हालांकि, इस वर्ष हुई प्रचंड बरसात की वजह से सेब की फसल को काफी क्षति पहुँची है। जिसको देखते हुए सरकार ने किसानों के फायदे हेतु एक कदम उठाया है। अब सरकार सेब की खेती करने के लिए अनुदान प्रदान करेगी। खबरों के अनुसार, जम्मू और कश्मीर भारत में कुल उत्पादित सेब के तकरीबन 80 प्रतिशत हिस्से में भागीदारी रखता है। सेब की खेती से प्रदेश को लगभग 1500 करोड़ रुपये की आमदनी अर्जित होती है। कश्मीर के कुपवाड़ा, गांदरबल, शोपियां, अनंतनाग, श्रीनगर, बडगाम और बारामुला जनपद में बड़े पैमाने पर सेब की खेती की जाती है।

सेब की विभिन्न किस्मों को मंगाकर भी उत्पादन किया जाएगा

जम्मू-कश्मीर प्रशासन और हॉर्टिकल्चर विभाग ने स्थितियों को ध्यान में रखते हुए राज्य उच्च घनत्व वृक्षारोपण पर बल दिया है। इस वजह से राज्य के कृषकों की आमदनी में इजाफा होने की संभावना है। राज्य सरकार के इस उपयोग के दौरान यूरोप के देशों से सेब की भिन्न-भिन्न प्रजातियों को मंगा कर लगाया जाएगा। सेब की नवीन किस्मों के वृक्षारोपण के लिए जम्मू-कश्मीर हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट कृषकों को 50 प्रतिशत तक की सब्सिड़ी देगी। इसके अतिरिक्त हॉर्टिकल्चर विभाग राज्य के किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए खेती से जुड़ी तकनीकी जानकारियां भी प्रदान कर रहा है। यह भी पढ़ें: कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

किसान भाइयों की आर्थिक स्थिति सशक्त बनेगी

अधिकारियों का कहना है, कि इस कदम से सेब के उत्पादन के साथ-साथ किसान भाइयों की आर्थिक हालत भी सशक्त होगी। हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के मुताबिक, बेहद जल्द ही नए किस्म के सेब को उपलब्ध करा दिया जाएगा।

हाई डेंसिटी एप्पल प्लांटेशन को लेकर अनुदान दिया जा रहा है

कश्मीर में हाई डेंसिटी एप्पल प्लांटेशन के चलते किसानों में दिलचस्पी बढ़ी है। साथ ही, कश्मीर में फिलहाल जगह-जगह पर रिवायती सेब के पेड़ों के स्थान पर इसी हाई डेंसिटी प्लांटेशन में दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जिसमें जम्मू कश्मीर हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट की ओर से 50% प्रतिशत का अनुदान भी किसानों को इस नई तकनीक के अंतर्गत सेब उगाने के लिए दिया जा रहा है। उसके साथ-साथ हॉर्टिकल्चर डिपार्मेंट किसानों को उत्साहित करने के लिए हर प्रकार की तकनीकी जानकारियां भी किसानों के खेतों तक पहुंचा रही है। यह भी पढ़ें: सेब की फसल इस कारण से हुई प्रभावित, राज्य के हजारों किसानों को नुकसान

युवा किसानों की भी दिलचस्पी बढ़ रही है

अब कश्मीर में पढ़े-लिखे युवा भी खेती की तरफ रुचि दिखाने लगे हैं। साथ ही, हाई डेंसिटी एप्पल प्लांटेशन उनके लिए रोजगार का साधन होने के साथ-साथ आमदनी का बेहतरीन माध्यम बनता जा रहा है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कश्मीरी सेब की मांग भारत के समेत संपूर्ण विश्व में है। इसी मिठास एवं रसीलेपन की वजह इसकी मांग संपूर्ण विश्व में है। अब ऐसी स्थिति में यह कश्मीरी लोगों के लिए आमदनी का एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है।
सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

आप अभी बाजार में सेब (seb or apple) देखते होंगे तो आपको लगता होगा कि ये सेब या तो जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश या किसी ठंडे प्रदेशों से आया है, क्योंकि अब तक आप यही जानते थे कि सेब सिर्फ ठंडे प्रदेशों में होता है। लेकिन जब आप यह जानेंगे कि अब सेब बिहार में भी उगने लगा है तो आपको हैरानी होगी। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि बिहार सरकार के प्रयास से बीते साल बेगूसराय जिले में सेब की खेती (seb ki kheti or apple farming) की शुरुआत की गई थी, जिसमें वहां के किसानों ने काफी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। आपको यह भी बता दे कि अब तक सेब सिर्फ हिमालयी प्रदेशों में हुआ करता था। लेकिन सब कुछ अच्छा रहा तो अब सेब बिहार में भी उगेगा, यह एक अनोखा प्रयास है बिहार सरकार का, जिससे यहां के किसानों को काफी फायदा और लाभ मिलेगा।

ये भी पढ़ें: सेब के गूदे से उत्पाद बनाने को लगाएं उद्यम

वैज्ञानिक की राय

भारत के सुप्रसिद्ध फल वैज्ञानिक, जो बिहार में फलों को लेकर बहुत दिनों से शोध करते हुए आ रहे हैं और किसानों को नई दिशा दे रहे हैं, उनके अनुसार सेब की खेती बिहार में किसानों के लिए वरदान है। उन्होंने बताया कि जब इसकी शुरुआत बेगूसराय में की गई तो शुरुआती दिनों में मौसम के कारण कुछ परेशानियां सामने आई, जिसे बिहार सरकार की मदद से ठीक कर लिया गया है और अब सेब की खेती सामान्य गति से हो रही है। गौरतलब है कि पूरे बिहार के किसान अब सेब की खेती में काफी बढ़ चढ़कर नई ऊर्जा और विश्वास के साथ हिस्सा ले रहे हैं। आने वाले दिनों में किसान को काफी लाभ होगा। बिहार में सेब की खेती एक खास किस्म के पौधों से संभव हो पायी है, जिसको वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार किया गया है, इसका नाम है, हरमन 99 या हरिमन 99 एप्पल (HRMN-99 Apple or Hariman 99 apple)। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि इस नए किस्म की उपज 40-45 डिग्री तापमान पर भी संभव है और इसी गुण के कारण यह बिहार ही नहीं अपितु राजस्थान में भी इसको उगाने का प्रयास किया जा रहा है और यह लगभग सफल होता भी साबित हो रहा है।

ये भी पढ़ें: ऐसे एक दर्जन फलों के बारे में जानिए, जो छत और बालकनी में लगाने पर देंगे पूरा आनंद
यही खूबी है कि इसकी उपज आने वाले कुछ दिनों में और भी अच्छी हो जाएंगी और बिहारी सेब भी भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जगह बना लेगा। आपको बता दें कि इसका प्रजनन भी स्वपरागण (self pollination) के द्वारा होगा, ताकि इसे किसी भी बगीचे में आसानी से उगाया जा सकता है। आपको बता दे कि बिहार के बेगूसराय और औरंगाबाद के कुछ जिलों में किसान अपने स्तर से इसकी खेती कर रहे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि इसका पैदावार भी बहुत उन्नत किस्म का है, इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में बिहार के सेब का स्वाद और रंग कश्मीर और हिमाचल वाले सेब से कम नही होगा।

ये भी पढ़ें: अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

किसानों को विशेष प्रशिक्षण

बिहार सरकार बिहारी सेब की खेती को बढ़ावा देने के लिए इसे एक अभियान की तरह चला रही है। इसके पैदावार को बढ़ाने के लिए इच्छुक किसान को प्रशिक्षण भी देने की बात कही है, ताकि वे सेब की खेती से जुड़े हर तकनीक को समझ सके। बिहार सरकार और वैज्ञानिक डॉक्टर एस के सिंह का भी मानना है कि अगर किसान पारंपरिक खेती जैसे धान, गेहूं आदि के अलावा सेब की खेती पर ध्यान देते हैं, तो यह वाकई में उनके लिए एक वरदान से कम नही होगा और उनकी आय भी आने वाले दिनों में दुगुनी, तिगुनी हो सकती है।
हिमाचल में सेब की खेती करने वाले किसान, ड्रोन का प्रयोग मुनाफा करेंगे दोगुना

हिमाचल में सेब की खेती करने वाले किसान, ड्रोन का प्रयोग मुनाफा करेंगे दोगुना

आये दिन देख रहे होंगे की पूरे भारत में लगातार नई नई तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, जिससे खेती-किसानी और भी आसान होते जा रही है। केंद्र व राज्य सरकार भी बहुत योजनाएं चला रही है, जिससे खेती किसानी और भी आसान होते जा रही है। लेकिन ये जो नई प्रयोग राज्य सरकार के द्वारा हो रही है, वह वाकई में काबिले तारीफ है। यह प्रयोग उन किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद है जो पहाड़ी और पठारी इलाकों में खेती कर अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं। आपको बता दें कि केंद्र व राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाओं और सब्सिडी की शुरुआत की है, जिससे किसानों को काफी मदद मिल रही है, जिनसे वह अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। इसी की योजनाओं की कड़ी में हिमाचल प्रदेश सरकार ने सेब की खेती कर रहे किसानों के लिए एक बहुत अच्छा प्रयोग शुरू किया है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि जब यह प्रयोग का सफल परीक्षण हो जाएगा, तब किसान सेब की खेती कर अपना सामान बाजार तक आसानी से पहुंचा सकेंगे।
ये भी पढ़े: सेब के गूदे से उत्पाद बनाने को लगाएं उद्यम

अब क्या होगा फायदा

बीते दिन हिमाचल प्रदेश में एक अनोखा प्रयोग का परीक्षण किया गया जो कि सफल रहा। आपको बता दे इस प्रयोग से पहले सेब की खेती कर रहे किसानों को अपने फल को मंडी तक पहुंचाने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता था। मज़दूरों के द्वारा सेब को ढोने में काफी समय लगता था व काफी नुकसान भी होते थे, जिससे किसान को मुनाफ़े की जगह घाटा का सामना करना पड़ता था। लेकिन अब सफल परीक्षण के बाद किसान काफी खुश नजर आ रहे हैं। आपको बता दें कि यह प्रयोग हिमाचल प्रदेश के किनौर के निचार गांव में हुआ है। निचार गांव के सेब बगान और वहाँ के पंचायत प्रतिनिधियों ने इस परीक्षण को किया है, जिसमें उन्होंने ड्रोन से सेब की पेटी को जिसका वजन लगभग 18 किलो के आसपास होता है, उसको इस ड्रोन के माध्यम से लगभग 12 किलोमीटर तक हवाई मार्ग के सहारे पहुंचाने में सफल रहा। इस तरीके के प्रयोग से सेब की खेती करने वाले किसान अब अपना सेब आसानी से कम समय में पहाड़ पर से नीचे उतार सकते हैं। इसमें मजदूर के तुलना में खर्च भी बहुत कम लगता है।
ये भी पढ़े: किसानों को खेती में ड्रोन का उपयोग करने पर मिलेगा फायदा, जानें कैसे
गौरतलब हो की पहाड़ पर रोड की स्थिति सही नही होने के कारण बगान वालो को अपने फल की उचित कीमत नहीं मिल पाती है और सेब के पैकिंग से लेकर उसको बाजार तक पहुंचने में समय भी काफी अधिक लग जाता है, जिससे सेब भी खराब हो जाता है और किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।

क्या कह रहे है किसान

वहां के किसानों का कहना है कि "इस प्रयोग से हम लोग को काफी लाभ मिलेगा और हमारे सेब का उचित मूल्य भी मिल पाएगा”। किसान का यह भी कहना है कि पहले व्यापारी भी रास्ते में देरी होने की वजह से कीमत काफी कम देते थे जिससे किसानों को काफी नुकसान सहन करना पड़ता था, जो अब इस परीक्षण के सफल हो जाने से खतम हो जायेगा। आपको यह भी बता दें कि ड्रोन के प्रयोग से अब किन्नौर में सेब व अन्य सामग्री को गंतव्य तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है।
मुंबई के वासी मंडी में व्यापारियों ने की आम की पहली खेप की पूजा

मुंबई के वासी मंडी में व्यापारियों ने की आम की पहली खेप की पूजा

आम को फलों का राजा कहा जाता है और इसमें भी जो सबसे खास है, वह अल्फांसो यानी हापुस है। बाजार में अल्फांसो का लोगों को हमेशा इंतजार रहता है। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मुंबई के वासी मंडी में अलफांसो आम की पहली खेप पहुँच चुकी है जिसका व्यापारी काफी गर्मजोशी से स्वागत कर रहे हैं। आपको बता दें कि इस आम की पहली खेप संजय पनसार नामक व्यापारी के यहाँ पहुंचा है। इस पहली खेप में हापुस आम का 600 दर्जन आम मंडी में पहुंचा है। इतना ही नहीं, इसी बाजार में अफ्रीका के मलावी से भी 800 दर्जन आम पहुँच चुका है। आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि मलावी के आम का भी स्वाद अल्फांसो के स्वाद की तरह ही होता है। व्यापारियों का कहना है, कि अभी इन आमों की कीमत काफी अधिक है, लेकिन जब आम की आवक मार्च के पहले हफ्तों से शुरू हो जाएगी तब इसकी कीमत थोड़ी कम हो सकती है। पंसार के अनुसार फिलहाल इस आम की रेट की बात करें तो ₹5000 प्रति दर्जन के आसपास है, वही जब इसकी आवक मंडी में शुरू हो जाएगी, तब इसकी कीमत अधिकतम ₹2000 प्रति दर्जन तक रहेगी।

ये भी पढ़ें: आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें : आम के पेड़ के रोगों के उपचार
गौरतलब है, कि मुंबई की इस मंडी में पहुंचने वाला हापुस आम का उत्पादन देवदत्त स्थित कटवन गांव के दो युवा आम उत्पादकों के द्वारा किया गया है। जिसका नाम दिनेश शिंदे और प्रशांत शिंदे बताया जाता है। इन युवाओं ने ही लगभग छह दर्जन हापुस आम की पहली पेटी मुंबई स्थित वाशी बाजार में भेजा है। आपको यह बता दें, कि अलफांसो नामक आम की खेप बिना सीजन बाजार में पहुंचना काफी अच्छा माना जा रहा है। इसके पहले खेप के पहुंचते ही बाजार के प्रबंधक सहित कई व्यापारियों और अध्यक्ष द्वारा इसकी पूजा अर्चना भी की गई। इस पहले खेप हापुस आम की पूजा का प्रचलन प्राचीनकाल से चलता आ रहा है। आपको यह जानकर बेहद खुशी होगी, कि इस अल्फांसो नामक आम की डिमांड देश में ही नहीं अपितु विदेश में भी है, जिसके कारण इसका उत्पादन भी अधिक पैमाने पर किया जा रहा है। इस अल्फांसो नामक आम को जियोटैग भी मिला हुआ है।

कौन सा इलाका करता है अल्फांसो का सबसे ज़्यादा उत्पादन

अल्फांसो मांगो नामक आम का सबसे बड़ा उत्पादक महाराष्ट्र को बताया जाता है। महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में इसका उत्पादन काफी ज्यादा मात्रा में होता है, जिसमें रत्नागिरि, रायगढ़ और कोंकण प्रमुख है। विशेषज्ञों के अनुसार इस साल भी अल्फांसो मांगो नामक आम हर साल की भांति फरवरी में मुंबई के वासी बाजार में आने लगेगा। अल्फांसो मांगो नामक आम का मुख्य सीजन मार्च, अप्रैल और मई माना जाता है। इस साल भी कोंकण क्षेत्रों से अल्फांसो नामक आम की आवक मार्च से शुरू हो जाएगी।
क्या होता है कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple), कैसे की जाती है इसकी खेती

क्या होता है कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple), कैसे की जाती है इसकी खेती

कस्टर्ड एप्पल को भारत में शरीफा या सीताफल के नाम से जाना जाता है। यह भारत में मुख्यतः सर्दियों के मौसम में मिलने वाला फल है। लेकिन अगर इसकी उत्पत्ति की बात करें तो प्रारम्भिक तौर पर यह फल अमेरिका और कैरेबियाई देशों में पाया जाता था। जिसके बाद इसका प्रसार अन्य देशों तक हुआ, इसके प्रसार में अंतरराष्ट्रीय व्यापारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple)

भारत में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की खेती बहुतायत में होती है। अगर मुख्य रूप से इसकी खेती की बात करें, तो महाराष्ट्र, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, असम और आंध्रप्रदेश में इसकी खेती होती है। इन राज्यों में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) का सबसे ज्यादा उत्पादन महाराष्ट्र में होता है। महाराष्ट्र में बीड, औरंगाबाद, परभणी, अहमदनगर, जलगाँव, सतारा, नासिक, सोलापुर और भंडारा कस्टर्ड एप्पल के प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) के उपयोग से कौन-कौन से फायदे होते हैं

यह एक ठंडी तासीर वाला मीठा फल होता है, जिसमें कैल्शिम और फाइबर जैसे न्यूट्रिएंट्स की भरपूर मात्रा मौजूद होती है। अगर हेल्थ बेनेफिट की बात करें तो यह फल आर्थराइटिस और कब्ज जैसी परेशानियों से छुटकारा दिलाता है। इसके पेड़ की छाल में मौजूद टैनिन दवाइयां बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके आलवा अगर इसके नुकसान की बात करें तो इसके फलों का सेवन करने से बहुत जल्दी मोटापा बढ़ता है। इसमें शुगर की मात्रा ज्यादा पाई जाती है, जिसके कारण इसका ज्यादा सेवन करने से बचना चाहिए।


ये भी पढ़ें:
ऐसे एक दर्जन फलों के बारे में जानिए, जो छत और बालकनी में लगाने पर देंगे पूरा आनंद

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की ये किस्में भारतीय बाजार में मौजूद हैं

भारतीय बाजार में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की ढेर सारी किस्में मौजूद हैं। जो अलग-अलग राज्यों में अगल-अलग जगह पर उगाई जाती हैं। कस्टर्ड एप्पल की मुख्य किस्मों में बाला नगरल, लाल शरीफा, अर्का सहन का नाम आता है। बाला नगरल किस्म के फल हल्के रंग के होते हैं और इसके फल में बीजों की मात्रा ज्यादा होती है। सीजन आने पर इस किस्म के पेड़ से 5 किलो तक कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा लाल शरीफा दूसरी प्रकार की किस्म है, जिसके फल लाल रंग के होते हैं। इस किस्म के हर पेड़ से सालाना 50 फल प्राप्त किये जा सकते हैं। अर्का सहन कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की तीसरी किस्म है, इसे हाइब्रिड किस्म कहा जाता है। इसके फल तीनों किस्मों में सबसे अधिक मीठे होते हैं।

कस्टर्ड एप्पल की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी

कस्टर्ड एप्पल की खेती वैसे तो किसी भी मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन पीएच स्तर 7 से 8 बीच वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त बताई जाती है। यह विशेषता खास तौर पर दोमट मिट्टी में पाई जाती है, इसलिए यह मिट्टी कस्टर्ड एप्पल की खेती के लिए अन्य मिट्टियों की अपेक्षा में बेहतर मानी गई है।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु एवं तापमान

कस्टर्ड एप्पल की खेती हर प्रकार की जलवायु में की जा सकती है, इसकी खेती के लिए कोई विशेष प्रकार की जलवायु की जरुरत नहीं होती है। लेकिन यदि इसकी खेती शुष्क जलवायु में की जाए तो यह पेड़ ज्यादा ग्रोथ दिखाता है। इस पेड़ को गर्म एवं शुष्क जलवायु में आसानी से विकसित किया जा सकता है। यह पेड़ इस तरह की जलवायु में ज्यादा उत्पादन देता है।


ये भी पढ़ें:
कृषि-जलवायु परिस्थितियों में जुताई की आवश्यकताएं (Tillage requirement in agro-climatic conditions in Hindi)

इस तरह से लगाएं कस्टर्ड एप्पल का पेड़

कस्टर्ड एप्पल का पेड़ लगाने के लिए इसके बीज की 2 से 3 इंच गहरे गड्ढे में बुवाई करें। इसके बाद यह पौधा अंकुरित हो जाएगा, जिसके बाद समय-समय पर पौधे को पानी देते रहें और निराई गुड़ाई करते रहें। इसके अलावा इस पौधे को पॉली हाउस में भी तैयार किया जा सकता है। पोलीहाऊस में तैयार करके पौधे को किसी दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर दें। अगर कस्टर्ड एप्पल लगाने के तीसरे तरीके की बात करें, तो यह पौधा ग्राफ्टिंग तकनीक का उपयोग करके भी तैयार किया जा सकता है। इस तकनीक में कलम के द्वारा पौध को तैयार किया जाता है, बाद में इसे कहीं और स्थानांतरित कर सकते हैं।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) के पौधों में इतने दिनों के बाद करें सिंचाई

वैसे तो कस्टर्ड एप्पल के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। लेकिन फिर भी इसे समय-समय पर पाती देते रहना चाहिए। इसके पौधों को अंकुरित होने के तुरंत बाद पानी दें। इसके बाद एक साल तक 3-4 दिन में पानी डालते रहें। एक साल बीतने के बाद हर 20 दिनों में पौधे को पानी दें।
कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

खेती-किसानी के क्षेत्र में कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि विशेषज्ञों का काबिल ए तारीफ योगदान रहता है। अगर वैज्ञानिक शोध करना बंद करदें तो किसानों को कृषि से उत्पन्न होने वाले नवीन आय के संभावित स्त्रोतों की जानकारी नहीं मिलेगी। जिससे खेती किसानी एक सीमा में ही सिमटकर रह जाएगी। किसानों को काफी फायदा होगा। कृषि विशेषज्ञों ने अब पंजाब की मृदा एवं जलवायु के अनुकूल सेब की किस्म विकसित की है। जी, हाँ अब पंजाब के किसान भाई भी सेब का उत्पादन करके अच्छी खासी आमदनी कर पाएंगे। जैसा कि हम जानते हैं, पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य के तौर पर जाना जाता है। उत्तर प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि और उपयुक्त जलवायु होने की वजह के चलते इसको छोड़के दूसरे स्थान पर पंजाब राज्य में सर्वाधिक गेहूं की खेती की जाती है। हालाँकि, अब पंजाब के किसान सेब का भी उत्पादन कर सकेंगे। दरअसल, कृषि विज्ञान केंद्र पठान कोट के जरिए एक ऐसी सेब की किस्म विकसित की गई है। जो कि पंजाब की जलवायु हेतु बिल्कुल उपयुक्त मानी जाती है। ऐसे में अब पंजाब के किसान सेब का उत्पादन करके बेहतरीन आय कर सकेंगे। मुख्य बात ये है, कि सेब की इस किस्म की खेती करने पर कम खर्चा आएगा।

सेब की खेती से बढ़ेगी किसानों की आमदनी

दैनिक भास्कर के अनुसार, कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट का सेब के ऊपर चल रहा परीक्षण सफलतापूर्वक हो चुका है। अब पंजाब के किसान पारंपरिक फसलों के अतिरिक्त सेब की खेती कर सकते हैं। इससे उन्हें अधिक आमदनी होगी। कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट के अधिकारी सुरिंदर कुमार ने बताया है, कि राज्य सरकार किसानों को फसल चक्र से बाहर निकालना चाहती है। जिससे कि वह बाकी फसलों की खेती कर सकें। ऐसे में सेब की खेती पंजाब में खेती किसानी करने वाले कृषकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगी।

अब गर्म जलवायु वाला पंजाब भी सेब का उत्पादन करेगा

अगर हम आम आदमी के नजरिये को ध्यान में रखकर बात करें तो अधिकाँश लोगों का यह मानना है, कि सेब का उत्पादन केवल ठंडे राज्यों में किया जा सकता है। विशेष रूप से उन जगहों पर जहां बर्फबारी हो रही है। हालाँकि, अब वैज्ञानिकों के प्रयासों से पंजाब जैसे अधिक तापमान वाले राज्य में भी सेब की खेती की जा सकती है। इतना ही नहीं अब कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट कृषकों को सेब के उत्पादन हेतु प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से जागरूक करने का कार्य करेगा। ये भी पढ़े: सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

गेंहू की भी तीन नवीन किस्म विकसित की थी

बतादें, कि खेती करने के दौरान लागत को कम करने के लिए और उत्पादन को अधिक करने के लिए देश के समस्त विश्वविद्यालय वक्त-वक्त पर नवीन किस्मों को विकसित करते रहते हैं। बतादें, कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा बीते माह गेंहू की तीन नवीन किस्मों को विकसित किया गया था। जिसके ऊपर अधिक तापमान का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सेब की इस किस्म की मुख्य विशेषता यह है, कि गर्मी का आरंभ होने से पूर्व ही यह पककर कटाई हेतु तैयार हो जाएगी।

यह किस्म HD-2967 एवं HD-3086 किस्म की तुलना में ज्यादा पैदावार देता है

खबरों के अनुसार, ICAR के वैज्ञानिकोंं ने बताया था, कि उन्होंने गेहूं की जिस किस्म को विकसित किया था। उनका प्रमुख उदेश्य बीट-द-हीट समाधान के अंतर्गत बुवाई के वक्त को आगे करना है। यदि इन नवीन विकसित किस्मों की बुवाई 20 अक्टूबर के मध्य की जाती है। तो यह होली से पूर्व पक कर कटाई हेतु तैयार हो जाएगी। मतलब कि गर्मी आने से पहले पहले इसको काटा जा सकता है। बतादें कि पहली किस्म का नाम HDCSW-18 है। यह HD-2967 व HD-3086 किस्म के तुलनात्मक अधिक गेहूं की पैदावार देगी।
सेब की फसल इस कारण से हुई प्रभावित, राज्य के हजारों किसानों को नुकसान

सेब की फसल इस कारण से हुई प्रभावित, राज्य के हजारों किसानों को नुकसान

बारिश के साथ हुई ओलावृष्टि से किसानों को जमकर नुकसान पहुँचा रही है। हिमाचल प्रदेश में विगत 6-7 दिनोें से हो रही बारिश और ओलावृष्टि की वजह से सेब की फसलों को काफी ज्यादा हानि पहुंची है। खरीफ की भांति रबी का सीजन भी किसान भाइयों के लिए बेहतर नहीं रहा है। मार्च में हुई बारिश, ओलावृष्टि के चलते गेहूं और सरसों की फसल चौपट हो गई थी। इसके अतिरिक्त अन्य राज्यों में भी बारिश-ओलावृष्टि से फसलें क्षतिग्रस्त हुई हैं। वर्तमान में ऐसे ही खराब मौसम की वजह से सेब के बर्बाद होने की बात सामने आ रही हैं। सेब को महंगी एवं पहाड़ी राज्यों की विशेष फसल मानी जाती है। ऐसी स्थिति में इस फसल के क्षतिग्रस्त होने के चलते किसानों की चिंता बढ़ गई हैं। किसान भाई काफी परेशान हैं, कि उसके नुकसान की भरपाई किस प्रकार की जाए। यह भी पढ़ें : कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

इस राज्य में ओलावृष्टि से हुआ नुकसान

मूसलाधार बारिश और ओलावृष्टि से किसानों को हानि हो रही है। कुल्लू की लग घाटी, खराहल घाटी और जनपद के ऊपरी क्षेत्रों में फसलों को बेहद हानि हुई है। बहुत से स्थानों पर काफी बड़ी संख्या में कच्चे सेब ही पेड़ से नीचे गिर चुके हैं। यहां तक कि उनकी टहनियां तक भी टूट गई हैं।

फसल में 80% प्रतिशत तक हानि की आशंका

लगातार बारिश, अंधड़ एवं ओलावृष्टि का प्रभाव सीधे सीधे फसलों व फलों पर देखने को मिल रहा है। जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग के माध्यम से नुकसान हुई फसल का सर्वेक्षण करना चालू कर दिया गया है। इसी कड़ी में स्थानीय किसानों ने बताया है, कि बारिश 6 से 7 दिन से निरंतर हो रही है। ऐसी हालत में 50 से 80 प्रतिशत तक हानि होने की संभावना है।

राज्य में बढ़ती ठंड और बारिश से हजारों की संख्या में किसान बर्बाद

सेब की अब फ्लावरिंग हो रही है। इस घड़ी में हुई बारिश और बढ़ी ठंड की वजह से सेब के फूलों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। फलदार पौधे, मटर,नाशपाती, प्लम सहित बाकी सब्जियों पर भी इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। खबरों के मुताबिक, घाटी में लगभग 30 हजार हेक्टेयर में बागवानी हो रही है। जिससे लगभग 75 हजार परिवार प्रत्यक्ष रूप से खेती से जुड़े हैं। अब ऐसी हालत में इन परिवारों को भारी नुकसान हुआ है।
इतने रूपये किलो से कम भाव वाले सेब के आयात पर लगा प्रतिबंध

इतने रूपये किलो से कम भाव वाले सेब के आयात पर लगा प्रतिबंध

भारत सरकार के द्वारा सेब कारोबारियों को काफी सहूलियत प्रदान की गई है। 50 रुपये से कम कीमत वाले सेब के आयात पर रोक लगा दी है। इससे भारत में सेब व्यापार से जुड़े कारोबारियों एवं कृषकों की आमदनी में काफी इजाफा किया जाएगा। विदेशों के सेबों की कीमत कम होने की वजह से भारत में उत्पादित किए जाने वाले सेब की स्थिति काफी खराब थी। सेब कारोबारियों द्वारा किया गया खर्चा तक नहीं निकल पा रहा था। बतादें, कि आमदनी का सौदा माने जानी वाली फसल से कृषक धीरे-धीरे दूर होने लगे थे। इसी कड़ी में केंद्र सरकार की तरफ से सेब उत्पादकों एवं कारोबारियों को एक बड़ी राहत दी है। इससे देश में सेब कारोबार से जुड़े सभी किसान एवं कारोबारियों की आमदनी में अच्छा खासा इजाफा होगा। जब किसी चीज का मूल्य कम या ज्यादा होता है, तो उसकी मांग सीधे तौर पर परिवर्तित होती है।

केंद्र सरकार द्वारा सेब से जुड़ी नई शर्त लागू की गई है

केंद्र सरकार द्वारा सेब आयात पर अब नई शर्त लागू हो चुकी है। इसके अंतर्गत 50 रुपये किलो से कम भाव के सेब का आयात नहीं किया जाएगा। विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा इससे जुड़ी अधिसूचना जारी कर दी गई है। अधिसूचना के मुताबिक, अगर सीआईएफ (माल ढुलाई, लागत, बीमा) आयात कीमत 50 रुपये किलो से कम होती है, तब उस स्थिति में इस तरह के सेब का आयात प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। ये भी पढ़े: बम्पर फसल के बावजूद कश्मीर का सेब उद्योग संकट में, लगातार गिर रहे हैं दाम

केवल इस देश पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा

न्यूनतम आयात मूल्य से जुड़ी शर्तें भूटान से आयात किए जाने वाले सेब पर लागू नहीं की जाऐंगी। शर्ताें के मुताबिक, सीआईएफ आयात मूल्य 50 रुपये प्रति किलोग्राम से कम आएगा। इससे आयात काफी प्रतिबंधित होगा। परंतु, न्यूनतम आयात मूल्य की शर्तें भूटान पर लागू नहीं की जाऐंगी।

कश्मीरी सेब उत्पादक और कारोबारी काफी चिंतित थे

भारत में ईरान से सेब का अत्यधिक मात्रा में आयात किया जाता है। ईरान से सेब की बहुत सारी बड़े स्तर पर सेब की खेप की जाती है। इसके चलते भारत में सेब काफी हद तक सस्ती कीमतों पर बिकता है। भारत में जम्मू कश्मीर एक बड़ा सेब उत्पादक राज्य है। परंतु, यहां का सेब विदेशों के सेब से कुछ ज्यादा महंगा होता है, इस वजह से लोग सस्ते के चक्कर में कश्मीरी सेब नहीं खरीदते हैं। आयात पर शर्ते लगाने अथवा प्रतिबंध लगाने की मांग सेब कारोबारी काफी वक्त से कर रहे थे। हालाँकि, वर्तमान में सेब पर प्रतिबंध लगने से सेब कारोबारी और किसान काफी ज्यादा प्रशन्न हैं। ये भी पढ़े: हाइवे में हजारों ट्रकों के फंसने से लाखों मीट्रिक टन सेब हुआ खराब

भारत इन देशों से सेब आयात करता है

भारत सेब आयात विभिन्न देशों से करता है। भारत को सेब भेजने वाले देशों के अंतर्गत अफगानिस्तान, फ्रांस, बेल्जियम, चिली, इटली, तुर्की, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, पोलैंड, ईरान, ब्राजील, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात सहित अन्य देश भी शम्मिलित हैं। अप्रैल-फरवरी 2023 में भारत द्वारा 260.37 मिलियन डॉलर सेब आयात किया गया था, जबकि 2021-22 में यह 385.1 मिलियन डॉलर तक रहा है।
यह राज्य सरकार सेब की खेती पर किसानों को 50% प्रतिशत अनुदान दे रही है, जल्द आवेदन करें

यह राज्य सरकार सेब की खेती पर किसानों को 50% प्रतिशत अनुदान दे रही है, जल्द आवेदन करें

आजकल बिहार में किसान बड़े पैमाने पर सेब की पैदावार कर रहे हैं। इससे सेब उत्पादक किसानों को लाखों रुपये की आमदनी हो रही है। बतादें, कि दरभंगा, समस्तीपुर, पटना, औरंगाबाद और कटिहार समेत पूरे बिहार में बड़े स्तर पर सेब की खेती की जा रही है। बिहार में किसान फिलहाल पारंपरिक फसलों की खेती के स्थान पर बागवानी फसलों की खेती में अधिक रूचि ले रहे हैं। यही कारण है, कि राज्य सरकार बागवानी फसलों के लिए बंपर अनुदान मुहैय्या कर रही है। बिहार सरकार का कहना है, कि बागवानी फसलों की खेती से किसान भाइयों की आमदनी में काफी वृद्धि होगी। जिससे उनकी स्थिति काफी हद तक सुधरेगी। अतः वे अपने परिवार को बेहतर और समुचित सुविधाएं दे सकेंगे। ऐसे भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने विशेष उद्यानिक फसल योजना के अंतर्गत सेब की खेती करने वाले किसान भाइयों को अनुदान देने का निर्णय किया है।

बिहार में हो रही सेब की खेती

आम तौर पर लोगों की यह धारणा है, कि सेब की खेती केवल हिमाचल प्रदेश और जम्मू- कश्मीर में ही की जाती है। हालाँकि, अब इस तरह की कोई बात नहीं है। फिलहाल, बिहार में किसान बड़े पैमाने पर सेब की खेती कर रहे हैं। इससे किसान भाइयों को लाखों रुपये की आमदनी हो रही है। बतादें, कि कटिहार, दरभंगा, समस्तीपुर, पटना और औरंगाबाद समेत पूरे बिहार में सैंकड़ों की तादात में किसान सेब की खेती कर रहे हैं। यहां के किसान हिमाचल प्रदेश से सेब के पौधे लाकर अपने खेतों में रोप रहे हैं।

बिहार सरकार ने 50 प्रतिशत अनुदान देने की घोषणा की है

सेब की खेती के प्रति किसानों की रूचि को देखते हुए बिहार सरकार ने राज्य में सेब के रकबे का विस्तार करने की योजना बनाई है। बिहार सरकार यह चाहती है, कि किसान भाई ज्यादा से ज्यादा संख्या में सेब की खेती करें। जिससे कि उनकी आमदनी में इजाफा हो सके। साथ ही, राज्य की अर्थव्यवस्था को भी काफी मजबूती मिलेगी। यही वजह है, कि प्रदेश सरकार ने सेब की खेती करने वाले कृषकों को 50 प्रतिशत अनुदान देने का फैसला लिया है। यह भी पढ़ें: यूट्यूब से सीखकर चालू की सेब की खेती, अब बिहार का किसान कमाएगा लाखों

बिहार सरकार किसानों को कितना अनुदान देगी

विशेष बात यह है, कि सरकार ने सेब की खेती करने हेतु प्रति हेक्टेयर इकाई खर्चा 246250 रुपये तय किया है। इसके ऊपर से किसान भाइयों को 50 प्रतिशत अनुदान मिलेगा। मतलब कि सरकार किसान भाइयों को 123125 रुपये मुफ्त में प्रदान करेगी। हालांकि, फिलहाल इस योजना का फायदा केवल कटिहार, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, बेगूसराय, औरंगाबाद और वैशाली जनपद के किसान ही ले पाऐंगे।

बिहार सरकार इन फसलों पर भी अनुदान दे रही है

बतादें, कि बिहार सरकार राज्य में बागवानी को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न फसलों पर अनुदान प्रदान कर रही है। फिलहाल, सरकार आम, केला, कटहल, पान, चाय एवं प्याज की खेती करने पर भी बेहतरीन अनुदान दे रही है। जानकारी के लिए बतादें, कि इसके लिए किसान भाई उद्यान निदेशालय की ऑफिसियल बेवसाइट पर जाकर आवेदन करें।
हिमाचल प्रदेश के किसानों के फायदे के लिए केंद्र सरकार ने अहम फैसला लिया

हिमाचल प्रदेश के किसानों के फायदे के लिए केंद्र सरकार ने अहम फैसला लिया

वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने बाजार इंटरवेंशन योजना के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में किसानों से सीधे सेब की खरीद की थी। इससे किसान भाइयों को काफी घाटे का सामना नहीं करना पड़ा था। बतादें, कि उन्हें उनकी फसल का सही भाव मिला था। यही कारण है, कि अब हिमाचल के किसानों ने केंद्र सरकार के समक्ष सेब की खरीदारी शुरू करने की मांग की है। हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक किसानों के लिए खुशखबरी है। हिमाचल प्रदेश सरकार की मांग पर केंद्र सरकार ने नाफेड के माध्यम से सेब की खरीद करने के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया है। यह कमेटी हिमाचल सरकार की मांग की समीक्षा करेगी। वहीं, इसके बाद केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट सौंपेगी। ऐसा कहा जा रहा है, कि रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार धान-गेहूं की भांति किसानों से नाफेड के माध्यम से सेब की खरादारी करने के लिए निर्णय ले सकती है। इससे कृषकों को सेब की अच्छी कीमत मिल सकेगी।

हिमाचल प्रदेश में सेब की फसल को हानि

दरअसल, इस वर्ष हिमाचल प्रदेश में
सेब की फसलों को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचा है। अत्यधिक बारिश होने से सेब के बहुत से बागान भूस्खलन की चपेट में आकर जमीदोंज हो गए। इससे किसानों को काफी ज्यादा आर्थिक नुकसान हुआ है। साथ ही, बेमौसम बारिश होने की वजह से सेब के फल भी पेड़ पर ही सड़ गए। इसके चलते भी उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है। इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में बारिश से बहुत सारी सड़कें ध्वस्त हो गईं। यही वजह है, जो बागों से सेब मंडियों तक समय पर नहीं पहुंच पा रहे हैं।

ये भी पढ़ें:
इतने रूपये किलो से कम भाव वाले सेब के आयात पर लगा प्रतिबंध

केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन कर दिया है

प्रदेश के स्थानीय किसानों का कहना है, कि एक तो पहले मौसम ने फसल को बर्बाद कर दिया है। अब मार्केट में सेब की सही कीमत नहीं मिल रही है। इससे उन्हें काफी घाटा उठाना पड़ रहा है। अब ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को धान-गेहूं की तर्ज पर किसानों से सेब की भी सीधी खरीदारी करनी चाहिए। यही कारण है, कि किसानों की मांग पर हिमाचल सरकार ने केंद्र से नाफेड के जरिए सेब की खरीद शुरू करने की मांग रखी है। इसके बाद केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन कर दिया।

हिमाचल प्रदेश की कितने प्रतिशत हिस्सेदारी है

बतादें, कि कश्मीर के उपरांत सबसे ज्यादा सेब का उत्पादन हिमाचल प्रदेश में किया जाता है। यह सेब की पैदावार के मामले में भारत के अंदर दूसरे स्थान पर आता है। हिमाचली सेब की आपूर्ति केवल देश में ही नहीं, बल्कि पड़ोसी देश नेपाल में भी होती है। मुख्य बात यह है, कि भारत में उत्पादित कुल सेब में हिमाचल प्रदेश की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत तक होती है।
मैनेजर की नौकरी छोड़ की बंजर जमीन पर खेती, कमा रहे हैं लाखों

मैनेजर की नौकरी छोड़ की बंजर जमीन पर खेती, कमा रहे हैं लाखों

पढ़ाई के बाद मैनेजर के रूप में करियर शुरू करने वाले हिमाचल के मनदीप के लिए, खेती की तरफ लौटना उनके लिए एक ऐसे सपने की तरह था इसके बारे में उन्होंने कभी नहीं सोचा था, लेकिन कहते हैं ना कभी-कभी कुदरत ही आपके लिए अपने आप कुछ कर देती है और मनदीप वर्मा के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. लगभग 5 साल तक एक जानी-मानी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने के बाद एक दिन अचानक मनदीप वर्मा ने अपने परिवार के साथ अपने शहर सोलर वापस आने का फैसला कर लिया. सोलन लौटकर मनदीप ने कुछ ऐसा किया जो उनके कामकाज और पढ़ाई से मेल नहीं खाता था और वह था घर में अपने बंजर जमीन पर खेती करने के बारे में सोचना. मनदीप वर्मा खेती के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे लेकिन वह एक बात को लेकर एकदम क्लियर थे कि उन्हें किसी भी तरह की परंपरागत खेती नहीं करनी है.  कुछ अलग करने की सोच नहीं उन्हें हॉर्टिकल्चर (Horticulture) की तरफ खींचा. उसके बाद मनदीप शर्मा ने हॉर्टिकल्चर में जो किया उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है। 

ये भी पढ़े: बागवानी लगाने के लिए बिहार सरकार किसानों को दे रही है 25000 रुपया 

 सबसे पहले मनदीप वर्मा ने अपने आसपास के इलाके के मौसम के बारे में पूरी तरह से जानकारी ली और उसके बाद इस पर खेती करने से पहले अपने एरिया में यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर से मुलाकात की. पूरी तरह से जानकारी मिल जाने के बाद उन्होंने फैसला किया कि वह अपनी जमीन पर कीवी  की खेती करेंगे । मनदीप वर्मा ने बताया कि उन्होंने कीवी के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए लाइब्रेरी में काफी समय व्यतीत किया था। उन्होंने कई किताबें पढ़ी और कृषि पर भी विभिन्न प्रोफेसरों से बातचीत की। उन्हें इस जानकारी के बाद कीवी की खेती (Kiwi Farming) शुरू करने का फैसला लिया। 

ये भी पढ़े: विदेशों में लीची का निर्यात अब खुद करेंगे किसान, सरकार ने दी हरी झंडी 

 मनदीप वर्मा ने बताया कि उन्होंने सोलन के उद्यानिकी विभाग से बात की थी और 2014 में 14 बीघे की जमीन पर कीवी गार्डन बनाने का काम शुरू किया था। इस गार्डन में उन्होंने कीवी की उन्नत किस्में लगाई थीं। साल 2017 में उन्होंने कीवी की आपूर्ति के लिए वेबसाइट पर ऑनलाइन बुकिंग शुरू की थी। इस वेबसाइट पर वह फल को कब तोड़ा जाना है, कब उसे डिब्बे में पैक किया जाना है, ऐसी सभी जानकारियां उपलब्ध कराते थे। उनके इन फलों को हैदराबाद, बैंगलोर, दिल्ली, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में ऑनलाइन बेचा जाता है। इसके अलावा मनदीप वर्मा ने इस फसल को तैयार करने में ऑर्गेनिक तरीका अपनाया है। इसके लिए खाद आदि उन्होंने खुद ही तैयार किया।